मेरा जहाँ बस आपसे ही मुक्कम्मल होता है ....
ज़मीन भी होती है तेरे साए में मेरा आस्मां भी होता है
मेरा जहाँ बस आपसे ही मुक्कम्मल होता है ....
बनके रहती हो दिल में धड़कन मेरी...
तेरे आने पर मेरा आशियाना मुक्कम्मल होता है...
गुम हूँ तुझमे , तेरी यादों से उलझा हूँ .....
तुम नहीं सुनती तोह दर्द-ए- दिल लिख के बयां होता है....
यह तोह कहने की बात है जहाँ मुक्कमल नहीं होता किसीका
तुम होती तोह मेरे सपनो का हकीकत से फासला बहुत कम होता है
वक़्त के साथ भुजे वो प्यार नहीं करता तुझसे..
यह प्यार ही है तेरा जिससे मेरी ज़िन्दगी का हर लम्हा रोशन होता है..
इस जहाँ में ऐसा नहीं की प्यार न हो .....इस जहाँ में ऐसा नहीं की प्यार न हो
पर अपने प्यार पर किसी को मेरे जैसा ऐतबार नहीं होता है ....
प्यार बस्ता है जिनके दिल में रब बनकर....
ऐसे दिल को फिर किसी जहाँ के मुक्कम्मल होने का इंतज़ार कहाँ होता है .....
वक़्त रहेगा साथ मेरे तोह तुम भी देखोगी.....
मेरा जहाँ तुमसे है .....तुम्हारे बिना न मैं न मेरा जहाँ मुक्कमल होता है.....
kisi ko mukkammal jahan nahin milta .kabhi zameen toh kabhi aasmaan nahin milta
Posted by Duty Until Death | 2:47 AM | 0 comments »
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